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अ॒प्स्व॑ग्ने॒ सधि॒ष्टव॒ सौष॑धी॒रनु॑ रुध्यसे । गर्भे॒ सञ्जा॑यसे॒ पुन॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

apsv agne sadhiṣ ṭava sauṣadhīr anu rudhyase | garbhe sañ jāyase punaḥ ||

पद पाठ

अ॒प्ऽसु । अ॒ग्ने॒ । सधिः॑ । तव॑ । सः । ओष॑धीः । अनु॑ । रु॒ध्य॒से॒ । गर्भे॑ । सन् । जा॒य॒से॒ । पुन॒रिति॑ ॥ ८.४३.९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:9 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:30» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:9


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शिव शंकर शर्मा

अग्नि के गुण तबतक दिखलाए जाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यद्) जब (अग्निः) भौतिक अग्नि (क्षमि) पृथिवी पर (रोधति) फैलता है, तब (जातवेदसः) उस जातवेदा अग्नि के (प्रयाणे) प्रसरण से (पत्सुतः) नीचे की (रजांसि) धूलियाँ (कृष्णा) काली हो जाती हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - कहीं-२ पर वेद भगवान् स्वाभाविक वर्णन दिखलाते हैं, जिससे मनुष्य यह शिक्षा ग्रहण करे कि प्रथम प्रत्येक वस्तु का मोटा-मोटा गुण जाने। तत्पश्चात् विशेष गुण का अध्ययन करे। हे मनुष्यों ! इन बातों की सूक्ष्मता की ओर ध्यान दो ॥६॥
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शिव शंकर शर्मा

अग्निगुणाः प्रदर्श्यन्ते तावत्।

पदार्थान्वयभाषाः - यद्=यदा। अग्निः। क्षमि=क्षमायां भूमौ। रोधति=प्रसरति। तदा जातवेदसोऽग्नेः। प्रयाणे=प्रसरणे। पत्सुतः= पदतलस्थानि। रजांसि=रेणवः। कृष्णा=कृष्णानि भवन्ति ॥६॥